Ganesh Chaturthi 2017 will begin on
Friday, 25 August
and ends on
Tuesday, 5 September
गणेश चतुर्थी
गणेश चतुर्थी का त्यौहार बहुत ही महत्वपूर्ण त्यौहार है | यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागो में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है | लेकिन महाराष्ट राज्य में यह त्यौहार और भी धूमधाम से मनाया जाता है | पुराणों और ग्रंथो के अनुसार इस दिन यानी चतुर्थी के दिन गणेश जी का जन्म हुआ था | गणेश चतुर्थी के दिन सभी भक्त बड़ी ही श्रद्धा से पूजा -अर्चना करते है | गणेश चतुर्थी के दिन विभिन्न जगहों में तथा घरो में गणेश जी की मूर्ती स्थापित की जाती है | और उसे पूरे नौ दिन तक बड़े ही श्रद्धा भाव से पूजा जाता है | गणेश जी के दर्शन करने के लिए भारी संख्या में आस -पास के लोग इकट्ठा होते है | नौ दिन पूरे होने के बाद गाने -बाजे और ढोल -नगाड़ो के साथ गणेश जी की प्रतिमा को तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है |
गणेश चतुर्थी की कथाये
एक बार माता पार्वती स्नान करने गयी तो उन्होंने स्नान करने से पूर्व उपटन लगाया और उस उपटन के मैल से एक बालक की प्रतिमा बनाकर उसे अपना द्वारपाल बना दिया। शिवजी जब प्रवेश कर रहे थे तब बालक ने उन्हें रोक दिया।शिवगणो ने जब यह देखा की एक बालक ने शिवजी का अपमान किया है तो उनसे यह देखा न गया और उन्होंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे माता पार्वती क्रोधित हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर माता की स्तुति कर तथा भगवान शंकर के ये कहने की वह उस बालक को पुनर्जीवित कर देंगे इससे माता पार्वती को शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजी उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा।
गणेश चौथ की कथा
गणेश चतुर्थी के दिन चन्द्रदर्शन करना मना होता है क्योकि कहते है की श्री कृष्ण ने चौथ का चाँद देख लिया था जिस कारण उनपर मणि चुराने का आरोप लगा था | एक बार जरासंध के भय से श्रीकृष्ण समुद्र के बीच नगरी बसाकर रहने लगे। इस नगरी को द्वारिकापुरी के नाम से जाना जाता है । द्वारिकापुरी में सत्राजित यादव नाम का राजा रहता था जिसने सूर्य देव की आराधना की। जिससे सूर्य देव प्रसन्न हो गए तब भगवान सूर्य ने उसे नित्य आठ भार सोना देने वाली स्यमन्तक नामक मणि अपने गले से उतारकर दे दी। मणि पाकर सत्राजित बहुत प्रसन्न हुआ और जब वह नगरी में गया तो सब उसकी मणि को ही देख रहे थे | श्रीकृष्ण ने उस मणि को देखा और उसे प्राप्त करने की इच्छा व्यक्त की। सत्राजित ने वह मणि श्रीकृष्ण को देने से इनकार कर दिया और अपने भाई प्रसेनजित को दे दी। एक दिन प्रसेनजित घोड़े पर बैठकर शिकार के लिए गया। वहां पर एक शेर था जिसने उसे मार डाला और मणि ले ली। रीछों का राजा जामवन्त उस सिंह को मारकर मणि लेकर गुफा में चला गया। जब प्रसेनजित कई दिनों तक शिकार से नहीं लौटे तो सत्राजित को बहुत दुख हुआ।और उन्होंने सोचा की श्रीकृष्ण ने मणि प्राप्त करने के लिए उसके भाई प्रसेनजित का वध कर दिया । अतः उसने बिना सत्य को जाने नगर में प्रचार कर दिया की श्री कृष्ण ने उसके भाई को मरकर स्यमन्तक मणि छीन ली | इस निंदा के निवारण हेतु श्रीकृष्ण प्रसेनजित को ढूंढने वन में गए। वहां पर प्रसेनजित को शेर द्वारा मार डालना और शेर को रीछ द्वारा मारने के चिह्न उन्हें मिल गए।
रीछ के पैरों के निशान का पीछा करते-करते वे जामवन्त की गुफा में पहुंचे और गुफा के भीतर चले गए। और वहां उन्होंने देखा कि पलने में एक बच्ची लेती है और उसके हाथो में मणि है जिसे वह खिलौना समझ कर खेल रही है |
जामवन्त ने श्रीकृष्ण को देखते ही युद्ध छेड़ दिया | श्रीकृष्ण के साथी जो उनके साथ गए थे वो गुफा के बाहर ही श्री कृष्ण की प्रतिक्षा कर रहे थे जब श्री कृष्ण सात दिनों तक वापस नहीं लौटे तो उनके साथियो ने उन्हें मरा हुआ जानकर वापस द्वारिकापुरी को लौट गए।गुफा के अंदर लगातार इक्कीस दिन तक युद्ध चला लेकिन इतने दिनों तक युद्ध करने के बाद भी जामवन्त श्री कृष्ण को पराजित न कर सका।तब उसके मन में विचार आया की कहीं यह वह अवतार तो नहीं है जिसके लिए मुझे श्री रामचंद्रजी का वरदान मिला था।इस बात की पुष्टि हो जाने पर उसने अपनी पुत्री का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया और मणि दहेज में दे दी। जब श्रीकृष्ण मणि लेकर वापस आए तो सत्राजित को अपने किए पर बहुत लज्जा आई तथा पछतावा हुआ। इस लज्जा से मुक्त होने के लिए उसने अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण के साथ कर दिया।कुछ समय व्यतीत होने के बाद श्रीकृष्णको किसी काम से इंद्रप्रस्थ जाना पड़ा | तब ऋतु वर्मा तथा अक्रूर के कहने पर शतधन्वा यादव ने सत्राजित को मार दिया और मणि अपने कब्जे में ले ली।जब सत्राजित की मृत्यु का समाचार श्रीकृष्ण को मिला तो वे तत्काल द्वारिका पहुंचे।जब शतधन्वा को यह बात पता चली की श्री कृष्ण और बलराम उसे मारने के लिए तैयार हो गए है तो शतधन्वा ने मणि अक्रूर को दे दी और स्वयं भाग निकला। श्रीकृष्ण नेशतधन्वा को ढूढ़ लिया और उसे मार दिया पर मणि को हासिल नहीं कर पाए कुछ समय बाद बलरामजी भी वहां पहुंचे।तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि मणि शतधन्वा के पास नहीं थी।लेकिन बलराम जी को श्री कृष्ण की बातो में विशवास नहीं हुआ | तथा वे अप्रसन्न होकर विदर्भ चले गए।जब श्रीकृष्ण द्वारिका को लौटे तो लोगों ने उनका भारी अपमान किया। तुरंत पूरी द्वारका नगरी में यह समाचार फैल गया कि स्यमन्तक मणि के लोभ में श्रीकृष्ण ने अपने भाई बलराम को भी त्याग दिया। श्रीकृष्ण का जिस तरह अपमान हुआ उसके कारण वह शोक में डूबे थे कि अचानक वहां नारदजी आ गए। उन्होंने श्रीकृष्णजी को बताया की आपने भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के चंद्रमा का दर्शन किया था जिस कारण आपको इस तरह लांछित होन | श्रीकृष्ण ने नारद जी से पूछा की चौथ के चंद्रमा को ऐसा क्या हो गया है जिससे उसके दर्शन करने से मनुष्य कलंकित होता है? तब नारदजी ने उत्तर दिया की एक बार ब्रह्माजी ने चतुर्थी के दिन गणेशजी का व्रत किया था। गणेशजी नेप्रशन्न होकर वर मांगने को कहा तो उन्होंने मांगा कि मुझे सृष्टि की रचना करने का कोई मोह न रहे | जैसे ही गणेशजी तथास्तु कहकर जाने लगे तो उनके विचित्र व्यक्तित्व को देखकर चंद्रमा ने उनका उपहास किया।जिस कारण गणेशजी ने.रुष्ट होकर चंद्रमा को श्राप दिया कि आज से कोई तुम्हारा मुख नहीं देखना चाहेगा। श्राप देकर गणेशजी अपने लोक को चले गए और चंद्रमा मानसरोवर की कुमुदिनियों में जाकर छिप गया | चंद्रमा के बिना सारे प्राणियों को बड़ा ही कष्ट हुआ। उनके कष्ट को देखकरसारे देवताओं ने ब्रह्मा जी से आज्ञा लेकर गणेश जी का व्रत किया और जिससे गणेश जी प्रसन्न हो गए और उन्होंने वरदान दिया कि अब से चंद्रमा श्राप से मुक्त तो हो जाएगा, पर भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को जो भी चंद्रमा के दर्शन करेगा उसे चोरी का झूठा लांछन जरूर लगेगा। और उन्होंने कहा की जो मनुष्य प्रत्येक द्वितीया को चंद्र दर्शन.करता रहेगा वह इस लांछन से बच जाएगा। इस चतुर्थी के दिन सिद्धिविनायक व्रत करने से सारे दोष छूट जाएंगे।इस बात को सुनकर सारे देवता अपने -अपने स्थान को चले गए। नारद जी कहते है इसलिए भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करने से आपको यह कलंक लगा है। तब श्रीकृष्ण ने कलंक से मुक्ति पाने के लिए यही व्रत किया था।कुरुक्षेत्र के युद्ध में युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा था की भगवन मनुष्य की मनोकामना सिद्धि का कौन-सा उपाय है?वह किस प्रकार धन, पुत्र, सौभाग्य तथा विजय प्राप्त कर सकता है?इस बात का श्री कृष्ण ने उत्तर दिया की यदि तुम श्री गणेश का विधिपूर्वक पूजन करोगे तो निश्चय ही तुम्हें सब कुछ प्राप्त हो जाएगा। तब श्रीकृष्ण की आज्ञा से ही युधिष्ठिरजी ने गणेश चतुर्थी का व्रतकरके महाभारत का युद्ध जीता था।
Ganesh chaturthi sms
In English
May the demolisher of sin,
Grace you with peace and love,
And blessings be showered upon you,
From heaven up above,
Happy Ganesh Chaturthi.
Have a happy and successful life
May all your dreams come true
May both day of life begin
With blessings of Ganesha for you.
Happy Ganesh Chaturthi.
God come to you in various forms
And blesses you in disguise
Happy Ganesh Chaturthi to you
Celebrate the God powerful yet wise.
Its the positive day of Lord Ganesh
Begin your journey from the start
Be good and make good
Just truthfully keep playing your part
Happy Ganesh Chaturthi.
On this favorable occasion of Ganesh utsav
Make a wish and it shall come true
Because Ganesha is the lord of trust
Who is forever study you.
May the gloom reduce
May there be glow
May loved once never go
Out of spectacle
May success and Joy always stay
Wish you a Happy Ganesh chaturthi.
The year of good chance and fun
With blessings of Ganesha has just begin
The lord may bless you in every way
This is my only request today.
A fresh sunrise, a new start
Oh lord Ganesha, stay loving me as your part.
Happy Ganesh Chaturthi.